प्यार का पीआर नहीं होता है भाई !
वैसे तो आपलोग अभी तक पीआर के फ़ायदे से ही अवगत हुए होंगे | जहाँ भी पीआर (Public Relations)के बारे में पढ़ा या
सुना हो ,आपको अच्छाई ही सुनने को मिली होगी | मैं भी कई दफ़ा इसके गुणों से आपलोगों को रूबरू करने का ठान रखा हूँ | लेकिन आज मैं आपको इसके साइड
इफ़ेक्ट से रूबरू करने जा रहा हूँ | पीआर का भी एक अंत होता
हैं ,एक सीमा होती हैं और एक दायरा होता हैं | इन्ही सब अनछुए,अनकही बातों को बताने जा रहा हूँ |
यह रोचक बातें, ना तो मैंने कही पढ़ी हैं,
और ना ही किसी से सुनी हैं | देशी गाय के घी
के तरह 100% शुद्ध मन की बातें हैं | आपको
बता दें की यह घी आज का नहीं बल्कि आज से50 साल
पहले वाली गाय की हैं, जब सच
में मिलावट नाम की चीज़ नहीं पाई जाती थी |
“ना दिल से होता है ना दिमाग से
होता है ये पीआर तो
इत्तेफाक़ से होता है, और क्या कहे पीआर करके भी पीआर न हो, ये
इत्तेफाक़ सिर्फ हमारे साथ होता हैं”
ऊपर के इस चर्चित शायरी में मैनें बस ‘प्यार’ के जगह ‘पीआर ’ लगा दिया | यही
वाकया पीआर वालो के साथ हमेशा होता हैं | .....माफ़ कीजिये ,
मेरे साथ होता हैं | पीआर और प्यार में सुई से
भी कम अंतर हैं | आप प्यार से पीआर कर सकते हैं लेकिन पीआर
से प्यार थोड़ा मुश्किल हो जाता हैं | बस यही पर ज्यदातर लोग
मात खाते हैं | अब पीआर वालों की दुर्दशा ये हैं की वो प्यार भी
करते हैं तो लोगों को पीआर ही
लगता हैं | औरो की
तो छोड़ दो , यहाँ घर और दफ्तर वाले भी पीआर का चश्मा नहीं
उतारना चाहते | पीआर से जुड़े लोग तभी एक मुकाम हासिल कर सकते
हैं, जब वह इस नाजुक से रिश्ते के अंतर को समझ लें | कई बार मन कचोटता हैं की इससे अच्छा तो और किसी व्यवसाय में रहता ,कम से कम वहा पीआर निशब्द तो रहता | आखिर! हम और
आपके जैसे लोग ही तो इस मिथक को दूर कर सकते हैं | ताकि आने
वाले समय में हम भी इस क्षेत्र को टाटा, बिड़ला, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में काम करने वाले
कर्मचारी के इतना फक्र महसूस कर सके | यकीन मानिये जिस
प्रकार भारत में इ-कॉमर्स , स्टार्टअप और मोबाइल क्रांति आई
हैं , ठीक उसी प्रकार अब वह दिन दूर नहीं जब पीआर भी एक
क्रांति लाएगी और कंपनी छोटी हो या बड़ी सबको इसकी जरुरत मालूम पड़ेगी | हालाँकि कुछ पीआर (PR)पंडित तो 2014 के आम चुनाव को इसका आगाज भी मानते हैं |
खैर, मेरा तो कहना ये था की अगर आपको भी इस
पीआर के बहती हुई गंगा में असली वाली डुबकी लगानी हैं तो अपने प्यार को इस पीआर से
ना मिलने दीजियेगा | गुजारिश हैं |
निचे
मैं आपको एक शायरी के साथ छोड़ के जा रहा हूँ जिसमे मैंने फिर से ‘प्यार’ की जगह ‘पीआर’ लगा दिया हैं लेकिन आप अपने मन में इसको ‘प्यार’ लगा के ही पढ़िएगा | यह मेरा अंतिम शब्दों का बाण है
जिसको मैं आपके भावनाओ से जोड़ के समझाने की कोशिश कर रहा हूँ |
“पीआर गुनाह है तो होने ना देना, पीआर खुदा है तो खोने ना देना, करते हो पीआर जब किसी से तो, कभी उस पीआरको रोने ना देना”
लेखक गौरव गौतम -PR Professionals
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