ब्लॉग पे चर्चा

द्रोणाचार्य से ITO मीडिया राउंड पे जा रहा था | मीडिया के डर को भगाना था औए पीआर के एक अहम् कड़ी से जोड़ने का भी मन था इसलिए मैंने अपने मित्र गौरव को साथ में ले लिया | गौरव मेरे दफ्तर से मीडिया का नब्ज पकड़ने के लिए भगाया जाता हैं | मीडिया राउंड के बारे में आपको बता दू की यह एक ऐसी आदत हैं जिसमे पीआर एजेंसी (PR Agency) को मीडिया के लोगों से अच्छे सम्बन्ध बनाने रहते हैं शारीरिक नहीं मानसिक | ITO मीडिया का मक्का माना जाता हैं इसलिए वही से अपनी यात्रा शुरू करने का मन बनाया था | आखिर यही तो वह पहिया हैं जिसके सहारे भी पीआर एजेंसी की गाड़ी चलती हैं

खैर, मेट्रो के इस एक घंटे के यात्रा के दौरान मेरी और गौरव के बिच कई सारी बाते हुई लेकिन ब्लॉग पर आ के बात अटक गयी | मेरा ये मानना था की ब्लॉग आपको लिखने की कला के साथ साथ आपको गूगल बाबा में भी ऊपर के श्रेणी में लाने का काम करता हैं और ये आरामदायक भी हैं | कई सारी पीआर एजेंसी आज के दौर में ब्लॉग से अपने को मेकअप करने में लगी हुई हैं जो की कही ना कही अच्छी बात है| गौरव इसके बिलकुल उल्टा लग रहा था | उसके एक वाक्य तो हुबहू मुझे अभी भी याद हैं –“ब्लॉग कई बार ब्लाक भी कर देता हैं”| यह तब तक ही कारगर है जब तक बोझ ना बने | कई बार तो इसका दबाब इतना होता हैं की मात्रा के चक्कर में गुणवत्ता ही ख़त्म हो जाती हैं

दूसरा दबाब हम जैसो के लिए यह भी होता हैं की आपको पीआर (PR)से ही मिलाजुला कोई ब्लॉग लिखना होता हैं और स्थिति ऐसी होती हैं मानो एक मेंढक कुंआ में गिर गया हो और यही सोचता हो की इतनी ही दुनिया हैं | हमारी वैचारिक मतभेद बढ़ती गयी और इसी बिच एक सुन्दर सी आवाज हमें सुनाई दी | “यह केंद्रीय सचिवालय हैं , दरवाजे बाई ओर खुलेगी”. फिर क्या था, पानीपत की लड़ाई की तरह हम लोग अन्दर से और कुछ लोग बाहर से निकलने और अन्दर जाने के लिए संघर्ष करने लगे | गौरव की बाते थोड़ी वजनदार लगने लगी थी इसलिए मैंने भी समय की मांग को देखते हुए उस वक़्त अपने ब्लॉग के चर्चा को ब्लाककरना ही उचित समझा |

लेखक अनिल कुमार -PR Professionals 



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