अपनी दिशा और स्वतंत्रता से गुमराह होता वर्तमान मीडिया
वर्तमान समय में मीडिया का सामान्य अर्थ
समाचार-पत्र, मैगज़ीन,टेलीविज़न, रेडियो, सोशल
मीडिया (Social Media) आदि से लिया जा रहा है। लिया भी जाना चाहिए क्योंकी सबसे ज्यादा प्रयोग तो
इन्हीं सब माध्यम का है | परम्परागत मीडिया जिसे लोक-मीडिया
भी कहते हैं , अब बहुत कम ही उपयोग में लाये जाते हैं |
वैसे भी किसी देश की उन्नति और प्रगति में मीडिया का बहुत बड़ा
योगदान होता है। अब तो मीडिया लोंगों के विचार भी बनाता है की किस बात पर आपकी सोच
क्या हो सकती है। हम अपने इतिहास को देख सकते हैं की आज़ादी की लडाई में मीडिया एक
बहुत बड़े हथियार के रूप में प्रयोग किया गया | अंग्रेजों ने
इस पर कितनी पाबंदियां लगायीं |
आज के तारीख में भी मीडिया की ताकत का अंदाज़ा ऐसे
लगा सकते हैं की एक पल में किसी व्यक्ति को हीरो तो किसी को जीरो बनाने की क्षमता
है | बड़े से
बड़ा नेता या उद्योगपति मीडिया के ताक़त को जानता है। साथ ही मीडिया का योगदान
सामाजिक जागरूकता में भी बहुत ज्यादा है। चाहे वह शौचालय सम्बन्धी अभियान हो,
बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान, साक्षर भारत, पोलियोमुक्त भारत, मतदाता जागरूकता, आधार कार्ड अभियान हो इत्यादि |
किसी भी तरह का सामाजिक जागरूकता मीडिया के माध्यम से दूर दराज़ तक
के इलाकों में आसानी से पहुँचता रहता है | निष्पक्ष और
जबावदेह मीडिया , समाज के लिए एक वरदान ही है |
लेकिन किसी भी कार्य के दो पक्ष होते हैं , मीडिया समाज के लिए वरदान तो है
यह इसका सकारात्मक पक्ष है परन्तु यह समाज के लिए अभिशाप भी बनता जा रहा है,
यह इसका नकारात्मक पक्ष है | इसके पीछे का
कारण बाजारीकरण है | इस बाजारीकरण के दौर में विज्ञापन और
टीआरपी रेटिंग ने मीडिया को समाज के अभिशाप के रूप में ढालना शुरू कर दिया है |
आज मीडिया के किसी भी माध्यम को देखिये सिर्फ और सिर्फ विज्ञापन ही
नज़र आयेंगे और यह विज्ञापन को दिखाने या छापने वाले मीडिया समूह उस विज्ञापन देने
वाली कंपनी या व्यक्ति के हितों की रक्षा में ही अपना ध्यान लगायी रहतीं है |
भले वह व्यक्ति या कम्पनी समाज को गुमराह कर रहा हो | क्योंकी उनको सिर्फ बिजनस करना है | सामाजिक चेतना
जगाना नहीं रहा अब मीडिया का कार्य | आपको सिर्फ वही दिखाया
या पढ़ाया जाता है जिससे मीडिया समूह का हित जुड़ा होता है | उनके
लिए सनसनी खबर सिर्फ वह है जो उनके टीआरपी रेटिंग और सर्कुलेसन को बढ़ा सके |
सामाजिकता और निष्पक्षता अब बहुत बाद में आती है |
निःसंदेह मीडिया समाज को शिक्षित करता है और
मनोरंजन करता है लेकिन धीरे धीरे सच और ज़मींन से दूर होता लग रहा है मीडिया | अपनी दिशा और स्वतंत्रता भूलता जा
रहा है मीडिया |
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