विपरीत बोल , नाम का शोर
अभी हाल में ही शोभा डे के बयान से आप सभी वाकिफ़
होंगें | पर
शायद वह ओलंपिक के दबाव और खेल भावना से वाकिफ़ नहीं हैं, तभी
तो खिलाड़ियों के मनोबल बढ़ाने के बजाय , उनका मनोबल तोड़ने
वाला बयां देकर सुर्खियाँ बटोरने में लगी हैं |
विपरीत बोल ,नाम का शोर ... पब्लिसिटी का एक टूल है जिसे
कथाकथित सेलिब्रेटी जब चाहे तब कुछ भी उल्टा बोल के अपने नाम को ट्विटर टैग में
टॉप पर रहने के लिए उपयोग कर सकते हैं | ऐसे लोग यह भी नहीं
सोचते की इसका असर खिलाड़ियों के दिमाग पर क्या पड़ेगा | शोभा
डे , या इन जैसे लोग जो समय- समय पर विपरीत बात बोल कर अपने
आप को बहुत बड़ा बुद्धजीवी प्रूव करते है , 100 मीटर दौड़ने
में नानी –दादी याद आ जाएँगी | ऐसे लोग
खुद से निम्बू पानी बना के भी नहीं पी सकते , थकान हो जाती
है, और खिलाडियों को , जो ओलंपिक में
देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उनको यह बोल रही की – वो
पैसे, समय की बर्बादी करने और सेल्फी लेने रियो गए हैं |
शोभा डे , अगर आप भी पुरे देश का प्रतिनिधित्व करती और आपके
किसी जीत या कार्य से देश का झंडा ऊँचा होता तो आपको भी फक्र होता | किसी देश का खिलाड़ी जीतता है और जब उसके देश का झंडा ऊँचा उठता है तब उस
खिलाड़ी की आंखे ख़ुशी से नम हो जाती हैं | पर आपको पब्लिसिटी
पसंद है ,चाहे वह जैसे मिले, जिस स्तर
पर गिर कर मिले |
एक खिलाड़ी गुमनामी के अँधेरे में मेनहत करता है , उसके मेनहत को कोई नहीं देखता
लेकिन वही खिलाड़ी अपने मेनहत के बल पर ओलंपिक में भाग लेता है और जीतता है तब हम
जानने लगते हैं और उसकी तारीफ करने लगते हैं | हारने पर हम
उसकी मेनहत पर शक करते है, लेकिन यह भूल जाते है की जिस खेल
में हमारे देश का खिलाड़ी भाग ले रहा है उसमें विश्व के अनेक देशों के खिलाड़ी
हिस्सा लेते हैं | और उस खेल में जीतने के लिए सभी खिलाड़ी
अपना 100 प्रतिशत देते हैं , परन्तु हर खेल में दो ही चीज़
होती है – या तो जीत या फिर हार | पर
इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं की उस खिलाड़ी ने अपना 100 प्रतिशत नहीं दिया | हर खिलाडी जब वह अपने देश के लिए खेलता है तब वह जीत कर अपने देश के झंडे
को ऊँचा करना चाहता है , अपने देश के लोंगों को गर्व करने का
एक मौका देना चाहता है , वह चाहता है की दुनिया के लोग उसके
देश को जाने |
पर कथाकथित बुद्धजीवियों को सिर्फ अपने आपको
मीडिया में हाईलाइट करने से आगे जंहा दिखता ही नहीं |
काश! कभी देश के खेल की तैयारियों के बारे में
सोचते की क्रिकेट को छोड़कर बाकि किस खेल के लिए लोग कितना सोचते हैं ? कितने लोंगों को ओलंपिक में गए
5 खिलाडियों का नाम याद होगा ? या कितने तरह के खेल होते है ?
मीडिया (Media) फोबिया और बेतुकी बातों को छोड़ , कभी अपने निजी स्वार्थों से ऊपर
उठकर सोचने की कोशिश कीजिये , कुछ मेडल तो आ ही जायेंगे |
Comments
Post a Comment