नमामि गंगे : अधुरा या सार्थक प्रयास
वर्तमान भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना
है “नमामि गंगे” जिसके द्वारा गंगा नदी को प्रदुषण मुक्त बनाने
की योजना है | उम्मीद है की इसका हश्र पिछले सरकारी प्रयासों
के जैसा नहीं होगा और गंगा की अविरल धारा लोंगो तक शुद्ध रूप में पहुँच पायेगी |
इस योजना को लेकर जिस तरह विज्ञापन और जनसम्पर्क
का दौर चल रहा है इससे तो यही प्रतीत हो रहा है की गंगा एक महीने में प्रदुषण
मुक्त हो जायेगी | क्या
ऐसा संभव है ??
नमामि गंगे योजना के अंतर्गत मुख्य रूप से दो
कार्य हैं | पहला,
गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाना | दूसरा , गंगा
किनारे बसे गाँवों के विकास कार्यों के साथ अन्य क्षेत्रों में विकास कार्य करना ।
गंगा नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण मल-मूत्र और औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में
गिराया जाना है( यह मुख्य कारण है और भी कारण हो सकते हैं)। इसको रोकने के
लिए गंगा के किनारे के राज्यों (उत्तराखंड, उत्तर
प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल) तथा गंगा किनारे के शहरों का सहयोग जरूरी है । परन्तु
कोई भी बड़ी नदी खुद में काफी नहीं होती, वह अन्य
सहायक नदियों के साथ ही पूरी होती है। अतः, गंगा का
सम्मान वापस लाना है तो साथ जुड़ी सहायक नदियों को भी नमामि गंगे योजना में शामिल
करना होगा । साथ ही प्रदूषण-मुक्ति के साथ ही एक अन्य मुख्य मुद्दा गंगा की
अविरलता का है। पर्यावरणविदों का मानना है कि गंगा को बड़े- बड़े बांधों के कारण
उसकी अविरलता में हो रहे रुकावट को अनदेखा नहीं किया जा सकता ।
सरकार इस बिषय पर
ध्यान नहीं दे रही या फिर जान बुझ के अनदेखा कर रही है, जबकि नमामि गंगे की योजना के मुताबिक़ सिर्फ गंगा सफाई ही नहीं, बल्कि इसके संरक्षण की योजना भी है | जिसमें बड़े बांधों से नदी पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन और उससे प्रभावित होने वाले लोंगों के जीवन में हुए बदलाव का अध्ययन करना
भी शामिल है | अगर यह सिर्फ दिखावे मात्र के लिए किया जाने
वाला प्रयास है तो फिर ‘नमामि गंगे’ एक
अधुरा प्रयास ही है जो जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ है | और अगर
यह एक सार्थक प्रयास है तो नदी से जुड़े सभी क्षेत्रों का विस्तृत अध्ययन कर इस
योजना में शामिल करके कार्य करना चाहिए | सिर्फ नमामि गंगे
के विज्ञापन और जनसम्पर्क से जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ ही साबित होगा |
Comments
Post a Comment