मोबाइल ब्रेक तो बनता हैं.. यार

अगर सच पूछे तो यह मुद्दा या यूँ कहे की ऊपर का शीर्षक मेरे दिमाग में तब आया जब मैं भी इस अनोखे जाल में फंसा | पी आर (Public Relations) मजदूर के दो छोर होते हैं , क्लाइंट और मीडिया | मैं भी कभी इस छोर तो कभी उस छोर पर डोलते रहता हूँ औरो की तरह | दफ्तर से मुझे अपने सीनियर मैडम शैलजा के साथ एक जरुरी मीटिंग में जाने को बोला गया | एयर कंडीशन कमरे में हम 7 लोगों की मीटिंग चालू हुई | पहले से ही पाता था की यह मीटिंग कम से कम 1 घंटे चलने वाली हैं, इसलिए पूरी तैयारी के साथ आया था

मीटिंग के दौरान सब अपनी बातों को बड़ी बखूबी से रख रहे थे लेकिन सब में मैंने एक कॉमन बात नोटिस करी और वही कॉमन बात मुझे आज यह ब्लॉग लिखने को मजबूर किया हैं | मैंने यह देखा की जैसे ही एक सीनियर का कॉल आया तो वह महाशय अपने फ़ोन में लग गए, और सबने अपने अपने मोबाइल को हाथ में लिया  और खुट - खुट करने लगे | मैं भी इस अनचाहे स्वाभाव से अछुता नहीं था | फिर तो सिलसिला चलता रहा | कभी ये तो कभी वो, सबने जब भी मौका मिला अपने फ़ोन को छुआ , यह स्पर्श्ता कभी किसी की चेहरे पर खुशी ला रही थी, किसी पर उदासी तो किसी को बेचैनी दिला रही थी | हालाँकि सबने यह जरुर कोशिश की उन्हें यह कार्य करते हुए कोई देख ना ले

इस अनोखे स्वाभाव को सच साबित करने और इसको नया नाम देने के लिए मैंने कई और मीटिंग में अपनी भागीदारी दर्ज कराई | सब जगह मैंने यह अनोखा एहसास नोटिस किया | मेरा यह मानना हैं की अगर मीटिंग के बीच में एक मोबाइल ब्रेक का प्रावधान कर दिया जाये तो सबको बड़ा सुकून और शांति मिलेगी | ख़ासकर पढ़े लिखे मजदूर को जो कई बार मज़बूरी में भी मीटिंग जाते हैं | सब के सब अपनी भावनाओं को सही ढंग से रख सकते हैं | मीटिंग का निष्कर्ष भी ज्यादा फलदायक होगा क्योकि उन्हें अपने अर्धांगिनी यानि मोबाइल की चिंता नहीं होगी

मोबाइल ब्रेककी समय सीमा भले ही एक या दो मिनट का ही क्यों ना हो लेकिन हो जरुर | कॉर्पोरेट वालो के लिए यह प्रावधान वरदान से कम नहीं होगा | मीटिंग की बेचैनी उनके चेहरे पर साफ़ तौर पर दिख जाती हैं | आपमें से कइयो ने भी नोटिस किया होगा | खैर , मेरे इस अटपटे सुझाव से वैसे लोग सहमत नहीं होंगे जो अपने मोबाइल को मृत मुद्रा में कर के मीटिंग जाते हैं | एक लोकतान्त्रिक देश का सजग नागरिक होने के नाते यह सुझाव दे रहा हूँ , बाकि कुछ नहीं | भारत में तो अभी कुछ भी वायरल हो जा रहा हैं तो मैंने सोचा की मैं भी बहती गंगा में अपने इस सुझाव के साथ डुबकी लगाऊं | कल से तो वैसे भी मुझे अपने सीनियर के साथ दोनों छोर की सैर पर निकलना हैं |

नोट :- यह ब्लॉग केवल पढ़े लिखे मजदूरों पर ही लागु होता हैं |
   
                   लेखक गौरव गौतम पीआर प्रोफेसनल्स 

    

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