हीरो बनाना हो या जीरो, सोशल साइट्स है ना

वर्तमान समय में विभिन्न सोशल साइट्स और इन्टरनेट ने पुरे विश्व को ग्लोबल विलेज बना दिया है | अमेरिका या तुर्की में कोई घटना घटती है तो, चंद सेकंड में पुरे विश्व के लोग जान जाते है | इसके उपयोग से आभासी दुनियां में लोंगों के बीच बहुत अधिक जुड़ाव हुआ है , वास्तविक दुनियां में कितना है यह एक वक्तव्य से साफ़ है – एक आदमी के फेसबुक पर 3000 मित्र थे, ट्विटर पर 850 लोग जुड़े थे , लेकिन जब उसकी तबियत ख़राब हुई तब उसके पास और साथ सिर्फ उसकी माँ ,पिता जी और पत्नी ही थे |

खैर यह व्यक्तिगत बात है , परन्तु मिस्र का आन्दोलन और भारत में हर चिंगारी का पुरे देश में फ़ैल जाना सोशल साइट्स के ही उदहारण है, जो व्यक्तिगत से व्यापक हैं |

हम मुख्य मुद्दे पर आते हैं , राजनितिक औजार के रूप में सोशल साइट्स का उपयोग |
पिछले एक वर्ष में भारतीय राजनीति के अखाड़े में देश के नेताओं के लिए सोशल साइट्स बेहद तेज़ और अचूक औजार साबित हुआ है | हालांकि, इसकी शुरुआत 3 साल पूर्व भ्रष्टाचार के विरोध में उपजे अन्ना जी के आंदोलन से हुई थी | जिसमें चंद सेकंड में अनगिनत लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने में भरपूर उपयोग हुआ | इससे प्रभावित होकर राजनितिक गलियारे में भी विभिन्न सोशल साइट्स जैसे फेसबुक और ट्वीटर इत्यादि को अपनाना पड़ा |

जी हाँ , अगर हम भारतीय सन्दर्भ में देखें तो इसका प्रयोग वर्तमान सरकार में बहुत बड़े रूप में किया गया | एक व्यक्ति को ऐसा दिखाया गया की वही हर्क्युलिश है, और वास्तव में लोंगों ने मान भी लिया | इसके पीछे बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे सत्ता विरोधी लहर , पिछली सरकार की नाकामी इत्यादि | परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की मीडिया के साथ सोशल मीडिया (सोशल साइट्स) का हाथ नहीं था, एक ऐसी लहर बनाने में जिससे प्रचंड बहुमत मिल गया और सरकार भी बन गयी |

आज सोशल साइट्स का इतना उपयोग है की, मुख्य मीडिया (टीवी, प्रिंट, रेडियो) भी पीछे हैं | किसी को हीरो बनाना हो या जीरो , बस सोशल साइट्स पर पेज बनाईये और जुट जाइये उसे टैग करने, फ़ैलाने में | सौ बार झूठ पढ़ने के बाद इंसान सच ही मानेगा | (ऐसी कहावत है- सौ बार झूठ बोलने पर, लोग सच ही मानने लगते हैं) 


                       लेखक विन्ध्या सिंह -‘पि. आर प्रोफेशनल्स’ 

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