सोशल मीडिया और पब्लिक रिलेशन



सोशल मीडिया, नाम सुनते ही इसके काम की एक धुंधली सी तस्वीर आपके मन मस्तिष्क में तैयार हो जाती है। रेडइट, फेसबुक, टिवटर, व्हाटसएप, लिंकडेन, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम, यूटूब, ब्लाग अगर सबका एक कोलाज  बने तो यह तस्वीर एकदम स्पष्ट और हाई रिजोलूशन के साथ हमारे सामने फ्लैश हो जाएगी। आर्कषक, अदभुद और तकनीक के ढांचे से तैयार इस तस्वीर ने पारंपरिक मीडिया की सीमाओं, पहुंच और प्रभाव को न केवल पीछे छोड दिया है बल्कि प्रतिष्ठित मीडिया के प्रत्येक दिग्गज से लेकर फ्रेशर तक को इसका अनुयायी बनने पर विवश कर दिया है। 

अगर जनसंपर्क यानि पब्लिक रिलेशन की बात करें तो शायद समाज को सीधे सीधे जोडने, प्रभावित करने और विचारवान बनाने की दिशा में इन सभी तकनीकों का प्रत्यक्ष योगदान है। सबसे खास यह की नूतन मीडिया का आकार ले चुका यह माध्यम पारंपरिक मीडिया से न केवल भिन्न है बल्कि इसके संचालन, प्रभाव और नियंत्रण और संतुलन सबके लिए एक अलग नीति है जो शायद कुछ समय तक की प्रभावी रहे और हर नए अपडेशन के साथ ही रीत बनने की नई नीति हमारे समक्ष हो।  

नाम के अनुरूप सोशल मीडिया आज के समय में समाज के लिए, समाज के द्दारा और समाज के जरिए संचालित होने वाले वर्चुअल संसार हैं। रिश्तों, संपर्क, म्युचुअल डायनाॅमिक्स और रिच कंटेट के पैंतरों के जरिए पारंपरिक मीडिया को अपनी अनुरूप चलाने की दक्षता पा चुके आम पीआर प्रोफेशनल के लिए यह माघ्यम एक नई चुनौती बनकर खडा हो गया है। इसने पीआर यानि पब्लिक रिलेशन के पांिरपंरिक प्रपोजल को सोशल मीडिया की एडशिनल पैकजिंग को स्वयं में समाहित करने पर विवश कर दिया है। 

समाज, परिवार, व्यापार से रचे बसे इस संसार के हर कोने में प्रतिक्षण अपनी पकड मजबूत करने वाले इस माघ्यम को केवल तकनीक की विशेष जानकारी, टाईमिंग, टैंिगंग की सटीक रणनीति के जरिए इस पर न केवल लगाम लगाई जा सकती है बल्कि इमेज बिल्ंिडग का नया अध्याय लिखा जा सकता है। हां, इस बार पुराने पैंतरे भूलकर खुद में नियमित अपडेशन करने की जरूरत है। 

लेखक दुर्गेश त्रिपाठी, पीआर प्रोफेशनल्स 


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