आर्कटिक की पिघलती बर्फ़ से दुनिया को खतरा
आज प्रकृति और उसके द्वारा प्रदत्त प्राकृतिक
संसाधनों के बेतहाशा उपयोग और भौतिक चाहत की अंधी दौड़ के वजह से न केवल प्रदूषण
बढ़ रहा है, बल्कि अन्धाधुन्ध प्रदूषण के
कारण जलवायु में बदलाव आने से धरती का तापमान भी बहुत बढ़ गया है । इसका सबसे बड़ा
कारण है मानव का स्वार्थ जो प्रदूषण का जनक है।
महात्मा
गाँधी ने इस बारे में करीब एक शताब्दी पहले कहा था- ‘‘धरती सभी मानव एवं प्राणियों की जरूरतों की पूर्ति करने में
सक्षम है, परन्तु
किसी की तृष्णा (प्यास) को शान्त नहीं कर सकती।’’ गाँधी जी का कथन बिल्कुल सही है
और यह भी कि मनुष्य की तृष्णा निरन्तर बढ़ती ही जा रही है । ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह
से पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है। जिसके चलते बिना मौसम बरसात, चिलचिलाती गर्मी और
बढ़ता समुद्र स्तर कई देशों के लिए मुसीबत का सबब बन चुका है। हाल ही में एक शोध
के मुताबिक (जो बहुत से मुख्य समाचार पत्रों में आया था), उत्तरी और दक्षिण ध्रुव
पर तापमान बढ़ने के कारण आर्कटिक महासागर पर बिछी बर्फ की चादर अब सिमटती जा रही
है।
अमेरिकन “नेशनल स्नो एंड आइस
डाटा सेंटर” ने एक सेटेलाइट द्वारा ताज़ा डाटा जारी किया है, जिसमें इस बात की
पुष्टि भी की गई है।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी
के ध्रुवीय समुद्र विज्ञान विशेषज्ञ प्रोफेसर पीटर वैडम्स का मानना है कि अगले दो
सालों में ही आर्कटिक का एक बड़ा हिस्सा बर्फ विहीन हो जाएगा। जो दुनियाभर के
देशों और मानव सभ्यता के लिए बहुत बड़ी चेतावनी है। चूँकि बर्फ़ सूर्य की किरणों को
परावर्तित कर देता है तथा पानी के सतह को गर्म नहीं होने देता जिससे वाष्पीकरण कम
होता है और वायुमंडल कम गर्म होता है | लेकिन बर्फ़ पिघलने से अब सूर्य की किरने
सीधा जल के जल पर पड़ेंगी और अवशोषित होंगी जिससे पानी गर्म होगा और फिर समुन्द्र
के तापमान के साथ ही वायुमंडल का तापमान बढेगा और साथ ही समुन्द्र का जलस्तर भी
बढेगा | साथ ही समुद्र का जल स्तर बढ़ने से कई तटवर्ती इलाकों के डूबने का खतरा
बना रहेगा और आम जन जीवन बुरी तरह से प्रभावित होगा |
आर्कटिक का बर्फविहीन
होना एक दुर्लभ स्थिति है। अगर अभी भी मानव सचेत नहीं हुआ तो मानव का अस्तित्व ही
खतरे में पड़ जायेगा और फिर बहुत देर हो चुकी होगी जब तक मानव इस भ्रम से निकलेगा
कि वही सबसे समझदार है, प्रकृति कुछ भी नहीं |
लेखिका अमृता राज -‘पी. आर प्रोफेशनल्स’
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