छूटती भाषा, टूटता समाज

आज पूरी दुनिया कुछ बेहतर पाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण चीजों को पीछे छोड़ती जा रही हैं। कुछ चीजें छूटकर विलुप्त भी हो रही हैं। हम किसी वन्य जीव या सामान की बात नहीं कर रहे। हम बात कर रहे हैं, भाषा की। भाषा मतलब अभिव्यक्ति का सबसे सुगम माध्यम। दुनिया में करोड़ो भाषाएं बोली जाती हैं। कुछ भाषाओँ का प्रयोग अधिक होने के कारण सुरक्षित अवस्था में हैवहीँ कम प्रयोग में लायी जाने वाली भाषाएँ विलुप्त होती भाषाएं हैं, जिनका प्रयोग समाजिक और वैश्विक सोच के कारण कम हो रहा है , वह लगभग क्षेत्रीय स्तर की हैं।
गांवों से पलायन कर शहर की तरफ भागना और शहरों की बढ़ती आबादीभाषा की कठिनाईबहुत सी प्राकृतिक आपदाएं आदि ऐसे कई कारण हैं जिससे भाषाएं विलुप्त होती गयी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही भाषा की उपेक्षा के कारण भी कई आंचलिक व लोक भाषाएं दम तोड़ रही हैं । स्कूल, कॉलेज हर जगह अपनी मूल भाषा से कट कर शिक्षा दी जा रही है, अब जो बच्चा अपनी भाषा को सीखेगा ही नहीं , तो वह अपनी भाषा से कट नहीं जाएगा ? इसका परिणाम यह होता है की क्षेत्रीय भाषा धीरे धीरे दम तोड़ देती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के रिपोर्ट के अनुसारवर्ष 2021 तक 96 प्रतिशत भाषाएं और लिपियां ख़त्म हो जाएंगी। इस प्रकार सिर्फ भाषा ही नहीं बल्कि उससे जुड़ी प्रकृति,इतिहास, रहस्यजीवन शैली,संस्कृति आदि भी विलुप्त हो जाती है। वर्तमान समय में संस्कृति भाषा भी इस ओर बढ़ रही हैक्योंकि अब संस्कृत भाषा बोलचाल के लिए प्रयोग में नहीं लायी जा रही है । देश में पालीप्राकृत सहित कई भाषाओं ने अपना अस्तित्व खो दिया । सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अभी तक नहीं पढ़ी जा सकीजिससे बहुत सी जानकारियां मिल सकती हैं। क्षेत्रीयराष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हजारों भाषाएं विलुप्त हो गयी या विलुप्त होने वाली हैं।

ऐसा कहा जाता है कि भाषा विचार व्यक्त करने का एक माध्यम है जिसे सहज पूर्वक प्रयोग में लाया जाता है | जनसम्पर्क और जनसंचार के लिए भाषा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा विचारों को फैलाया और आगे बढ़ाया जा सकता है | भारत का इतिहास बहुत समृद्धशाली रहा है जहाँ अनेक ऋषि मुनि और तपस्वियों ने अपने अनुभव को भाषा के माध्यम से लोंगों के साथ साझा किया और सामाजिक समरसता के साथ-साथ लोंगों के जीवन में बदलाव लाये |
भाषा के पुनरुथान के लिए हम सबको आगे आना चाहिए और अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिए |
दूसरों को देख कर या नक़ल कर अपनी भाषा को कमजोर और पिछड़ा नहीं समझना चाहिए , तभी भाषा को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है और देश की एकता के साथ साथ इसके बहुरंगी समाज को विकास के पथ पर आगे ले जाया जा सकता है |  लुप्त हो रही भाषाओं के वजह से ही देश-दुनिया में सामाजिक प्रभुत्व टूटता जा रहा है। भाषा संरक्षण के लिए वैचारिक पहल की बहुत अधिक जरुरत है।

                           लेखक विन्ध्या सिंह -‘पि. आर प्रोफेशनल्स’ 


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