मानव कल्याण के लिए महावीर स्वामी की शिक्षा जरुरी
जैन
धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे | उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन
त्याग और तपस्या में व्यतीत कर दिया | महावीर स्वामी उस युग
में जन्मे जब हिंसा, पशुओं की बलि देना,जाति-पाति का भेदभाव जैसी कई गंभीर समस्याएं चरम सीमा पर थी |
इन सभी समस्याओं से घबराये महावीर स्वामी जी ने अहिंसा का विकास
करते हुए इन सभी कुरीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद की | इसके
लिए उन्होंने शांति का मार्ग चुना | वर्तमान समय में सभी लोग
इस बात से पूर्णतयः अवगत नही है की महावीर स्वामी थे कौन | यदि
उन्हें जाना जाता भी है तो सिर्फ और सिर्फ जैन धर्म से | लेकिन
यह सत्य नही है उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दूसरों के लिए संघर्ष करते हुए समाज
के सभी जाति- वर्गों के लिए अहिंसात्मक लडाई लड़ी और विजय भी हासिल की |
बहुत
से लोग महावीर स्वामी को भगवान का दर्ज़ा देते है तो कुछ वर्ग महापुरुष का | महावीर स्वामी ने अपने गृहत्याग
के साथ साथ वस्त्र त्याग भी कर दिया और सांसारिक मोह से स्वयं को अलग कर दिया |
यह सब उन्होंने स्वयं के लिए नही बल्कि समाज के लिए किया | महावीर स्वामी का बचपन राजसी ठाट-बाट में व्यतीत हुआ | महावीर स्वमी का बचपन का नाम वर्धमान था | ईसा से
599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता
त्रिशला के यहाँ तीसरी संतान के रूप में जन्मे थे | वर्धमान
के तेजस्वी मन को पहचानते हुए माता-पिता ने मात्र 8 वर्ष की आयु में ही इन्हें
विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया | जब
महावीर स्वामी की आयु 28 वर्ष की थी तो इनके माता पिता का देहांत हो गया था जिसके
पश्चात इन्होने सांसारिक सुख से मुह मोड़ लिया था |
महावीर स्वामी को लेकर बहुत सी भ्रांतियां आज भी प्रचलित है | श्वेताम्बर संप्रदाय मानता है की वर्धमान का यशोदा से विवाह हुआ था और
उन्हें एक बेटी अयोज्जा हुई | लेकिन वही दिगंबर संप्रदाय इस
बात को सिरे से ख़ारिज करता है की उनका सम्पूर्ण जीवन काल में कभी भी विवाह ही हुआ |
उन्होंने अपना पूरा जीवन ब्रह्मचर्यं में व्यतीत किया है | महावीर के अरे में यह भी बताया जाता है की शायद उन्हें बचपन में यह ज्ञात
हो गया था कि इन्द्रियों का सुख,विषय-वासनाओं का सुख केवल
दूसरों को दुःख पहुँचाकर ही हासिल किया जा सकता है |
महावीर
स्वामी ने लगभग ३० वर्षों तक जो उपदेश दिया वह प्राणीमात्र के हितों का संवाहक है |
वह जहाँ-जहाँ गए वहाँ –वहाँ के समाजों में
सामाजिक चेतनता , गतिशीलता और पुरुषार्थ की भाव चेतना
उत्पन्न की | उन्होंने सदैव सहज,सरल और
सुबोध शैली में बोला जिससे अधिक से अधिक लोग उसे अपने जीवन मं अवतरित कर सके |
उन्होंने अपने उपदेशों में हमेशा समाज कल्याण, सत्य का पालन,प्राणियों पर दया, अहिंसा और जियो और जीने दो पर अधिक बल दिया | क्यों
की वह जानते थे समाज को बेहतर बनाने के लिए लोगों को इन्ही कारकों पर चलना पड़ेगा |
उन्होंने जैन धर्म के को अपनाने के लिए हमेशा लोगों को प्रेरित किया
लेकिन कभी किसी पर दबाव डालने की चेष्टा नही | वह जैन धर्म के माध्यम को लोगों को जोड़ना चाहते थे और वह विभिन्न जातियों
के बोझ में दबे लोगों को निकल कर शांति का जीवन देने का प्रयास करते रहे | उन्होंने हमेशा यही कहा की परमात्मा एक है सभी धर्म एक है और सम्पूर्ण
मानव जाति एक है | इसलिए अपने को बांटने से हमारा ही नुकसान
है और हमेशा यह बताते रहे की जैन धर्म एक विद्यालय की भांति है जहाँ पर सभी मानव
एक ही जाति के है और उनका एक ही भगवान है |
लेखिका सुकीर्ति गुप्ता -‘पी आर प्रोफेशनल्स’
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