निजी स्कूलों की ‘गुरुदक्षिणा’



निजी स्कूलों से सम्बंधित एक ताजा अनुभव सुनिए | मैं स्टेशनरी का सामान खरीदने एक किताब की दुकान पर गया | मरियल सी दिखनेवाली यह दुकान, हजारों रुपये की किताबें मिनटों में बेच रही थी | काफ़ी भीड़भाड़ थी दुकान पर | किताब खरीद रहे एक दुसरे ग्राहक (जो एक जर्नलिस्ट लग रहे थे) से मैंने कहा ‘इतनी महँगी किताब? शोधपत्र खरीद रहें है क्या ?’ जवाब में उन्होंने तेरह किताबों की एक सूची मेरे हाथों में थमा दी | उनके चेहरे पर किताब खरीदने की मज़बूरी साफ झलक रही थी | उन्होंने बताया की उनका बेटा एक निजी स्कूल के पहली कक्षा में पढ़ता है | उसकी किताबों की कीमत दो हजार रुपये है | यह शहर के किसी बड़े स्कूल की किताबों की सूची नहीं, बल्कि मोहल्ला स्तरीय एक पब्लिक स्कूल के पहली कक्षा में पढ़नेवाले छात्रों के किताबों की सूची थी | अब आप कल्पना कीजिए की किताबों की कीमत क्या रहती होगी ? अब हालात देखता हूँ तो लगता है कि एक मध्यमवर्गीय परिवार का पूरा खानदान भी मिलकर कमाएगा तो भी अपने बच्चों को निजी स्कूल में नहीं पढ़ा पाएगा | यकीन मानिए जैसे फ़रवरी-मार्च का महिना छात्रों के लिए ‘परीक्षा’ देने का महिना होता है, ठीक वैसे ही अप्रैल का महिना मध्यमवर्गीय छात्रों के अभिभावकों के लिए ‘क़र्ज़’ मांगने का होता है |


अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य की उम्मीद में बेचारा लाचार अभिभावक इधर-उधर से उधार-कर्जा मांग कर मोटी रकम, निजी स्कूलों के भूखे पेट में विभिन्न प्रकार की फ़ीस के रूप में भर देता है | शिक्षा अब एक बाजार है और मजबूर अभिभावक इस बाजार में खड़ा होकर खून के आँसू रो रहा है | आज देश में जितनी तेजी से आबादी बढ़ी है, उससे ज्यादा तेजी से प्राइवेट स्कूल खुले हैं | अंगरेजी नामवाले पब्लिक स्कूलों की तो जैसे बाढ़ आ गई है और सबसे अधिक तेजी से अगर कुछ बढ़ा है तो वो हैं निजी स्कूलों की पैसे की भूख | इन स्कूलों की ‘गुरुदक्षिणा’ ही मध्यमवर्गीय परिवारों का पसीना छुड़ा देती है | एडमिशन – रेनुअल खर्च, बस का किराया और विकास फण्ड के नाम पर जो मुहमांगी राशि मांगी जाती है, वह कमर तोड़ देनेवाली है | किताबों का खर्च तो एक तरफ है, दरअसल सरकारी स्कूलों की नाकामयाबी और सड़ चुकी व्यस्था की बुनियाद पर महल की तरह खड़े ये निजी स्कूल अब पढ़ाने के लिए कम और वसूली करने के लिए अधिक जाने जा रहें है | इन्हें राज्य व्यवस्था के नियम-कानूनों का कोई भय नहीं है | छोटे-छोटे मदों में भी बड़ी राशि वसूलना, इन निजी स्कूलों की हॉबी बन गई है | अगर समय रहते इन सब चीजों का विरोध नहीं किया गया तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि भविष्य में इन निजी स्कूलों में पढ़नेवाले आपके बच्चे अगर सांस भी लेंगे तो उसकी भी फ़ीस ये स्कूल वाले आप यानी अभिभावकों से ही वसूलेंगे | 


लेखक अनिल कुमार -‘पी आर प्रोफेशनल्स’

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