फोटोग्राफर से सेल्फी खींचने तक



अरसा पहले आपने पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को फोटो खिचवा लेने के लिए कहते, उनके आगे पीछे दौड़तें, उन्हें मानते-रिझातें फोटोग्राफरों को देखा होगा| एक जमाना था जब इन फोटोग्राफरों का धंधा खूब चौकस था| समय बदला, स्मार्ट फ़ोन आये, कैमरों के दिन लद गए | मोबाइल से पहले के ज़माने में फोटोग्राफर पर्यटकों की यात्रा को यादगार बनाते थे | आधे घंटे में फोटोग्राफर आपको ताजमहल के साथ खड़ा कर फोटो में उतार कर हाथ में लिफाफा थमा देता था |

गाँव से लेकर कस्बों और शहरों तक स्टूडियो का एक खास जलवा था, फोटो खिचाने का एक कायदा होता था, जिसे फोटोग्राफर लागू करता और खिचवाने वाले उसे माननीय न्यायालय के आदेश की तरह मानते | वह जब हुमायूँ के मकबरे पर खड़े गाँव से आये जोड़े को एक दूजे की कमर पकड़ने को कहता, तो कभी हाथ ना पकडनेवाले जोड़े भी बेहिचक कमर पकड़ते, फिर वह कहता जरा हसियें, पैर पीछे कीजिये, गर्दन थोड़ा दायें| ये फोटोग्राफर ही थे, जिन्होंने फोटो खीचने के एंगल खोज निकाले थे कि तीली जैसे आदमी की हथेली पर ताजमहल खड़ा हो जाता था | उस दौर में शादी-ब्याह में स्टूडियो का बड़ा महत्व था |

जेहन में अतीत की एक बात केसरी स्टूडियो की है,  जब भी कोई लड़की साड़ी पहन बायां हाथ नीचे किए, दायीं हथेली बायीं बांह पर रखे फोटो खिचवातें दिखती थी, तो समझ जातें थे कि यह फोटो लड़के वालों को पसंद करने के लिए जायेगा, पिता लगातार फोटोग्राफर से कहता- देखिएगा केसरी जी, थोड़ा लम्बा दिखे ई फोटो में और जरा हाथ पर कटे का दाग बचा के, बढ़िया से खिचिएगा, बहुत परेशानी है शादी खोजने में|  यानी तब के फोटोग्राफर फोटो ही नहीं, रिश्ते भी खीचा करता था |


अब मोबाइल आ गया है, फटाक से खीँच लिया, मेमोरी में सेव, मोबाइल ने हर आदमी के अन्दर एक विश्वसिनीय फोटोग्राफर पैदा कर दिया है, जो सब खीँच लेना चाहता है, ऊपर से ‘खुदखींचन पद्धति (सेल्फी) चलन में आयी है और आदमी आत्मनिर्भर के चरम दौर में है, खुद का फोटो खुद ही खीँच रहा है | लोग चेहरे की विचित्र भाव भंगिमा बनाकर सेल्फी ले रहें हैं | लड़कियां कमर को अजीब तरह से लचका, होठों को टेढ़ा गोल कर, नाक को विचित्र तरीके से सिकुड़ा कर सेल्फी ले रही हैं, हर आदमी के पास अब खुद खीचने का क्रेज है | अब फोटोग्राफर वाला युग गया| पहले हम खिंचवाने के पैसे देते थे, अब खिंचवाने के पैसे मिलते हैं | ऐसे कई ‘खीँचरोगी’ हैं, जो गरीब बच्चों को पैसे देकर उनकी फोटो खींचते हैं, भुखमरी, कंगाली को फोटो किसी भी अख़बार या पत्रिका के लिए सबसे चमकदार फोटो साबित होती है | जो जितना वीभत्स है उतना दर्शनीय है | टांग खींचने से लेकर फोटो खींचने में एक्सपर्ट इस पीढ़ी से उम्मीद करता हूँ कि दुनिया कहीं भी जाएँ, बस एक फोटो कैमरों का बोझ उठाए फोटोग्राफरों से जरूर खिंचवाएँ |

                                            लेखक अनिल कुमार -‘पी आर प्रोफेशनल्स’


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