आरक्षण की मांग, ‘आर्थिक संकट’ या ‘ज़िद’?

हमारे देश में आरक्षण को लेकर एक नए तरह की उत्तेजना देखी जा रही है | यह उत्तेजना खासकर उन समुदायों में देखी जा रही है जिनको 2 दशक पहले इसकी जरुरत महसूस नहीं होती थी | वें अपने आप को एक बड़े समुदाय का मानते थे और समाज में अपने ओहदे को सबसे ऊपर समझते थे | हाँलाकि हमारे देश में समय समय पर आरक्षण की मांग उठती रही है | राजस्थान में ही कुछ साल पहले गुर्जर समुदाय ने आरक्षण की मांग उठायी थी | पिछले ही साल पटेल समुदाय के आन्दोलन में पूरा गुजरात दहक़ उठा था | आंध्रप्रदेश में भी कापू समुदाय ने आरक्षण की मांग उठायी थी और पिछले कुछ दिनों से जाटों के आरक्षण की मांग ने पूरा हरियाणा को झुलसा कर रख दिया है | परन्तु देश में समय-समय पर विभिन्न समुदायों द्वारा आरक्षण के मांग का कारण क्या हो सकता है ? क्या इसका कारण देश की आर्थिक संकट है या फिर किसानो की आर्थिक दुर्दशा ? या फिर इसका कारण ज़िद तो नहीं कि एक समुदाय को आरक्षण मिल गया तो हमें भी मिलना चाहिए ?

आरक्षण की मांग करने वाले किसान समुदाय से ही है | हमेशा से वें एक सफल किसान रहें हैं | खासकर जाट समुदाय बड़े पैमाने पर खेती पर ही निर्भर रहा है | इसके आलावा गुर्जर, कापू और पटेल समुदाय अपने अपने क्षेत्र में अव्वल नंबर के किसान रहें हैं | इसलिए इन खेतिहर किसानो की आरक्षण के मांग की असलीयत कुछ और हो सकती है या फिर उनकी आर्थिक दुर्दशा जिसके कारण आरक्षण मांगने पर मजबूर हो रहें हो किसानों और खेती का संकट इतना बढ़ गया है कि उनकी रुचि अब खेती में नहीं रह गई है। एक अख़बार के अनुसार पिछले तीन सालों में देश में 3000 से भी अधिक किसानो ने आर्थिक स्थिति से तंगी आकर आत्महत्या की है | जिसमें से 2014 और 2015 के आकडे सबसे ज्यादा है | इससे यह पता चलता है कि खेती अब घाटे का सौदा हो गया है और किसान इससे दूर भाग रहें हैं |

आरक्षण मांगने वालों के मन में यह भी प्रश्न हो सकता है कि एक किसान समुदाय जो आरक्षण लेकर सरकारी नौकरियां व अन्य सरकारी फायदों का लाभ उठा रहा है तो हम भी क्यूँ नहीं | हो सकता है, यह इर्ष्या उनकी ज़िद बन गयी हो और उन्होंने यह ठान ली होगी कि जब एक समुदाय आरक्षण ले सकता है तो हम पीछे क्यूँ हटें, आरक्षण तो हम भी लेकर रहेंगे |

परन्तु सच्चाई यह भी है कि संविधान के मुताबिक आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं दी जा सकती है | अब फैसला सरकार और उनको चलाने वाले नुमाइन्दों को करनी होगी कि इस संकट  को कैसे रोका जा सके, नहीं तो आम आदमी की ताकत से तो हर कोई वाकिफ है


                                लेखक अनिल कुमार -‘पी आर प्रोफेशनल्स’

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