‘पीआर यात्रा’ - पर्सनल से प्रोफेशनल तक (पार्ट 2)
मेरे ‘पीआर यात्रा’ – पर्सनल से
प्रोफेशनल के पार्ट-1 में आपने मेरे पानी से पनीर चलाने तक की पदोन्नति से रूबरू हो चुके हैं | जीवन
के छोटे छोटे पल आपको कैसे बड़ी सिख दे जाता हैं , ये भी मैंने
आपको बताया | खैर मैंने अभी आधी यात्रा ही की है और उसी के
अनुभव को साझा करने की कोशिश कर रहा हूँ | धीरे धीरे पता चला की जिंदगी की हर चीज़
पीआर से ही जुडी हुई हैं |वैसे तो काफी सारी यादे धुंधली पड़ी हुई
हैं फिर भी उनमे से कई रोचक यादे जो मुझे बार बार यह याद दिलाने को मजबूर करता हैं
की कैसे मेरा बचपन का प्यार यानि पीआर-पर्सनल आगे चल कर पीआर–प्रोफेशनल
बन गया | विडम्बना देखिये की आज मैं जिस कंपनी में काम करता हुआ या यूँ कहे की
जिस कंपनी ने मुझे मेरे बचपन के प्यार से मिलवाया उसका नाम भी ‘पी आर प्रोफेशनल्स’ निकला |
बचपन में हर सामान्य बच्चों की तरह मैं भी थोडा
शरारती हुआ करता था | सुबह में उठने से कतराना,किसी भी मनपसंद
चीज़ के लिए जिद करना और माँ बाप के बताये हुए बातो पे मन ही मन घुस्सा भी करना
मेरी दिनचर्या में शामिल था | हालाँकि ये आदत मैंने समय रहते सुधार
ली और बाद में मुझे यह ज्ञात हुआ की अगर हम इन सारी बातो को अभी अपने जीवन में सही
से ढाल लेते है तो आधा पीआर का काम अपने आप बन सकता हैं | बचपन में एक बार
मेरे बिना गलती किये किसी बात को लेकर मेरी छोटी बहन ने मुझे बहुत मारा था और मैं
घुस्से में आग बबूला होकर बाबु जी के पास गया | तब मुझे याद है
की मेरे बाबु जी ने उस वक़्त यह सिखाया था की कैसी भी समस्या आये क्रोध मत लाना,
उस
पर नियंत्रण करना ,समय पर सब ठीक हो जाता हैं और आज भी इस बात को याद
करके मैं पीआर में आगे बढ़ता हूँ और अपने क्लाइंट्स के साथ साथ मीडिया के दोस्तों
का भी दिल जीतता हूँ क्योंकि कई बार आपको बिना गलती के भी डाट पड़ती हैं |
बचपन
में हमें पत्र लिखना सिखाया जाता था ,हालाँकि उसकी जगह अब ईमेल ने ले लिया
हैं | हर पत्र के अंत में एक बात लिखी जाती थी जिसको मैं अपने प्रोफेशनल
पीआर से जोड़ कर देखता हूँ | हर पत्र के अंत में ये लिखा जाता था की
‘बड़ो को प्रणाम एवं छोटो को शुभ प्यार’. यह पंक्ति पीआर
वालो के लिए वरदान से कम नहीं हैं | अगर आप पीआर में नाम बनाना चाहते हैं
तो इस पंक्ति का जरुर अनुसरण करे | आप जितना विनम्र होंगे पीआर में उतना
ही आगे बढेंगे | हमारा काम एक छोटे पत्रकार से लेकर एक बड़े
संपादक को खुश रखना हैं | एक छोटे क्लाइंट से लेकर बड़े क्लाइंट
की बाते बड़ी विनम्रता से सुनना और समझना हैं | यही हमारी पहचान
होनी चाहिए | ऐसी ही कई तमाम घटनाये हैं जो मुझे आज भी अपने
प्रोफेशनल जिंदगी में मदद करती हैं |
अब शायद आपलोग भी इतना पढ़ने के बाद
अनुभव करने लगे होंगे | मैं जिंदगी के हरेक प्रोफेशनल व्यवसाय को करीब
से देखना ,समझना चाहता था | बचपन की यादों के साथ जीना चाहता था |
मैंने
बीटेक करने के बावजूद इसमें अपने करियर को सवारा | आज लोग मुझे ‘डार्क
हौर्स’ कहते हैं, मुझे खुशी मिलती हैं और मिले भी क्यू ना,
मैं
अपने बचपन के प्यार को जो पाया हूँ | सुना हैं ऐसे खुशनसीब बहुत कम ही होते
हैं जिनको अपना बचपन का प्यार मिलता हैं | पीआर की यह यात्रा यही नहीं समाप्त
होगी | शो अभी जारी हैं दोस्तों |
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