‘पीआर यात्रा’ - पर्सनल से प्रोफेशनल तक (पार्ट 1)

जिंदगी के किसी भी यात्रा का आनंद आपको हरपल खट्टी-मीठी यादों के साथ गुदगुदाता रहता हैं | वैसे तो किसी भी यात्रा को शब्दों में सिमेटना और हुबहू उसके आनंद को दुसरो को महसूस कराना अपने आप में चुनौतीपूर्ण कार्य हैं, फिर भी मैं अपने इस अनोखे और दिल को छु लेने वाले यात्रा से आपको जरुर रूबरू कराना चाहेंगे | यह यात्रा हैं पीआरकी | पब्लिक रिलेशन यानि जन संपर्क यानि अपनी बातो के कॉपी को दुसरो के दिमाग में पेस्ट करना(अभी तक के मेरी समझ में ) | शायद मेरी इस यात्रा की शुरुआत 7 या 8 साल के उम्र से ही हो गयी थी जब मैं इसको पर्सनल तौर पे आनंद लिया करता था | उम्र बढ़ने, अपने जिंदगी के 22 साल पूरा करने और तक़रीबन इसी उम्र में अपने व्यवसाय की शुरुआत इस क्षेत्र में करने के बाद मुझे अहसास हुआ की जिसको मैं बचपन से करते आ रहा था उसको ही लोग पीआरबोलते हैं | पर्सनल प्रोफेशनल कब बन गया पता ही नहीं चला | हाँ , एक अंतर जरुर लगा की अब मैं अपने बचपन के प्यार यानि पीआर से पैसे कमाने लगा हूँ | अपने पैर पे खड़ा हो गया हूँ और इस आनंदपूर्ण क्षेत्र में नयी नयी चीजों को लाने के लिए प्रगतिशील हूँ |

बात तबकी हैं जब मैं अपने खेलने और कूदने के उम्र में था | अपने पैत्रिक गाँव में चाचा के लड़के की शादी में आया था | हमारे गाँव में आज भी लोगो को कुर्सी पे बैठा कर,टेबल पे खाना परोसा जाता हैं | कई जगह तो निचे एक कपड़े के पट्टे पे ही बैठा के बड़ी प्यार से लोगो को खिलाया जाता हैं | बाल्टी और अन्य छोटे मोटे बर्तनों में चावल ,दाल और सब्जियों को रख के लोगो को पूछ पूछ कर बड़ी प्यार से खिलाया जाता हैं | इसका भी आनंद ही कुछ और होता हैं | आपमें से कई ने इसको महसूस भी किया होगा | खैर , मैं भी घर पे शादी के दिन जिद करने लगा की मुझे भी लोगो को खाना खिलाना हैं, मुझे भी कुछ दिया जाये ताकि मैं भी लोगो को भोजन करा सकू | उम्र में सबसे छोटा होने के कारण मुझे एक पानी की जग दी गयी और पानी चलाने के लिए दिया गया | शायद मेरे घर वाले को यह डर होगा की मैं और कोई भी चीजों को लोगो को ढंग से खिला नहीं सकता | या फिर एक यही ऐसी चीज़ होती हैं जिसमे घर वाले के पैसे नहीं लगे थे | वैसे आपको बता दे की पनीर की सब्जी, गुलाब जामुन और मीट या मछली घर के सबसे समझदार आदमी को दिया जाता हैं ताकि वो लोगो को ढंग से खिला सके,बचत करते हुए

यहाँ भी एक पी आर सिख हैं जो मुझे बाद में पता चला | कम खर्च में ज्यादा से ज्यादा अपने क्लाइंट के लिए खबर छपवाना अपने इसी बचपन के पर्सनल सिख से ज्ञात हुआ | आज भी यह काम दफ्तर के सबसे समझदार कर्मचारी को दिया जाता हैं ताकि वो मीडिया से अच्छा रिलेशन बना के अपना काम करवा ले | मैंने पानी-आनी, पानी-आनीबोलते हुए आये हुए लोगों को मुस्कुराते हुए अपने अनोखे अंदाज में पानी पिलाया | खाना खाने के बाद कुछ लोग मेरे चाचा के पास आये और बोले की आपके यहाँ जो बालक पानी चला रहा था वो गजब का था | हम सबने खाना कम और पानी ज्यादा पिया | मुझे भी बुलाकर चाचा ने सबके सामने मेरी पीठ थपथपाई | एक पानी के माध्यम से सबका दिल जीत लिया उस दिन पर्सनल तौर पे | अगली बार से मुझे भी पनीर चलाने वाले श्रेणी में रखा गया | मुझे बड़ी खुशी मिली | शायद यही से मेरी पीआर करिअर की शुरुआत हुई थी | उस वक़्त ये पर्सनल था और आज ये प्रोफेशनल हो चूका हैं |आज भी मैं वही करने की कोशिश करता हूँ जो उस वक़्त पानी पिलाते समय किया करता था | अपने क्लाइंट और मीडिया को खुश करना और अपने कम्पनी में सबसे हट के कुछ अलग करना जिसको सब समय समय पे सराहते हैं | काम सबसे छोटा ही क्यू ना मिले आप उसको अपने अद्भुत कला से बड़ा बना सकते हैं | यही तो पीआर हैं | मुझे भी सबसे पहले पानी चलाने को मिला और फिर पनीर | आज भी वैसे ही होता हैं बस रूप अलग हैं |       
                         
आगे भी जारी हैं..................



         लेखक गौरव गौतम -‘पि. आर प्रोफेशनल्स’

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