पीआर के इस दौर में विज्ञापन की इच्छा ना करे


ऊपर दी हुई शीर्षक को समझने का सबसे आसान तरीका हैं हाल ही में घटित जेएनयू विवाद जेएनयू का कन्हैया अगर पीआर छोड़ विज्ञापन की ओर ध्यान दिया होता तो आज हम सब टीवी चैनल में कुछ और देख रहे होते पिछले 10 सालो में भारत में पीआर में जो आग पकड़ा हैं उसमे वर्तमान सरकार ने घी डालने का काम किया हैं अब वह दौर नहीं रहा जब हम पैसे से कल के अखबारों में मन मुताबिक विज्ञापन दे कर अपना उदेश्य पूरा कर लेते थे लोगो में जागरूकता आई हैं गाँव शहर की ओर भागा हैं और शहर महानगर की ओर अख़बार की जगह अब मोबाइल ने अपना पैर पसार लिया हैं ऑनलाइन मीडिया का क्रेज़ बढ़ा हैं 

ऐसे वातावरण में हम आम नागरिक को पैसे वाली ख़बर (विज्ञापन) को मापने में ज्यादा समय नहीं लगता अब वह दौर हैं जब हम पीआर के माध्यम से ही अपनी बातों को उचित लोगो तक पंहुचा सकते हैं आप विज्ञापन के माध्यम से अपने बातो को तो रख सकते हैं लेकिन क्या आपकी बात उन लोगो तक पहुच रही हैं जिनको आप बताना चाहते हैं इसका जबाब बस पीआर ही दे सकता हैं जिसके माध्यम से लोग आपकी बातो को ठीक उसी रूप में सुनते और समझते हैं जिस रूप में आप चाहते हैं 

संकट के समय आप विज्ञापन नहीं बल्कि पीआर के माध्यम से ही अपने संकट के बादल को हटा सकते हैं हालाँकि विज्ञापन को पूरी तरह से मैं नकार भी नहीं सकता लेकिन हाँ70:30 का अनुपात आपको बेहतर रिजल्ट दे सकता हैं विज्ञापन की कमी ना खले इसके लिए पीआर में बहुत सारे टूल मौजूद हैं जिसके माध्यम से हम इसकी भरपाई कर सकते हैं अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैं बताने जा रहा हूँ उसके बाद शायद आप विज्ञापन देने के पहले कम से कम 10 बार जरुर सोचेंगे अगर आकड़ो को देखा जाये तो जिस पैसे में आप पीआर कर सकते हैं उसके दश गुना पैसे आपको विज्ञापन में खर्च करने पड़ेंगे कई बार यह आकड़ा ज्यादा भी हो सकता हैं हम भारतीयों को किफायती ,सस्ता और टिकाऊ चीज़ ज्यादा पसंद आता हैं और इस मामले में पीआर विज्ञापन से हर एक मामले में भारी पड़ता दिखाई दे रहा हैं |


       लेखक गौरव गौतम प्रबंधक -‘पि. आर प्रोफेशनल्स’

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