कंपनियों के लिए पी आर एजेंसी एक एंटीबायोटिक दवा के समान

एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने जब 1928 में एंटीबायोटिक दवा ‘पेनिसिलीन’ का आविष्कार किया तब पूरे विश्व में चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांति की लहर दौर गई | चिकित्सा के क्षेत्र में यह सबसे बड़ी खोज मानी जाती है | क्योंकि एंटीबायोटिक दवा के आविष्कार के बाद लगभग हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बीमारी का ईलाज संभव हो गया | एंटीबायोटिक दवा की खास बात यह है कि यह शरीर में जीवाणु से होने वाले हर तरह की बीमारी को ठीक कर देती है या फिर जीवाणु के असर को निष्क्रिय कर देती है | और इसका असर जीवाणुयुक्त सभी बीमारीयों में अचूक होता है | उसी तरह अगर हम आज के ज़माने में कंपनियों के लिए एंटीबायोटिक दवा की तुलना पीआर एजेंसी से करे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी |

18वीं शताब्दी में लवी ली और एडवर्ड बर्नाय्स ने जब पी आर की शुरुआत की थी तब इसकी इतनी महत्ता नहीं थी | परन्तु आज के इस प्रतिद्वंदिता वाले 21वीं सदी में कंपनियों के लिए पी आर एजेंसी एक एंटीबायोटिक दवा का ही रोल निभा रही है | अपने क्लाइंट के लिए पी आर एजेंसी हर एक छोटी-बड़ी खामियों को पूरा करने में सक्षम होती है | बल्कि कंपनीयों को उनके खामियों (बीमारी) के बारे में बताती भी है और उनका हल (ईलाज) भी निकालती है | कंपनीयों को समय-समय पर नए सुझाव और आईडिया प्रदान करती है जिससे उनकी छवि मार्केट में अच्छी बनी रहती है | अतः हम यह कह सकते हैं कि पीआर एजेंसी नयी सोच, रचनात्मकता, क्रियान्वयन और सक्षमता जैसे रसायन का ऐसा एंटीबायोटिक दवा है जो कंपनीयों के छवि को बनाये रखने में अचूक और असरकारक साबित होती है |   

जिस प्रकार शरीर के बीमारी को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक दवा असरदार होती है ठीक उसी प्रकार कंपनीयों को आगे बढ़ने के लिए पी आर एजेंसी की जरूरत होती है | एंटीबायोटिक दवा अगर ना दी जाये तो बीमारी जल्द ठीक नहीं होती वैसे ही किसी कंपनी के लिए अगर पीआर ना किया जाए तो कंपनियों की छवि मार्केट में ज्यादा दिन तक टिक नहीं पायगी |   

        लेखक अनिल कुमार -‘पी आर प्रोफेशनल्स’

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