पोस्टर पॉल्युशन - कम से कम 15 दिन के लिए बैन करे- जनहित में जारी

ऑड ईवन फार्मूला के गणित ने भले ही दिल्ली वालो को उलझाया हो लेकिन 15 जनवरी के बाद से बढ़ते सर्द और बढ़ते ट्रैफिक ने इस फ़ॉर्मूले को फिर से लागू  करने की मांग को बढ़ावा दिया हैं | आख़िरकार दिल्लीवासी सुकून की जिंदगी जीना चाहते हैं | अब यह वाकई में सोचने वाली बात हैं की क्या केवल इस प्रदूषण  को रोकने से हम सुकून भरी जिंदगी जी सकते हैं | बात जब ‘सुकून’ की आती हैं तो मेरा मन बार बार एक ऐसे पॉल्युशन की ओर जाता हैं जिसके बारे में शायद हम सब सुनकर और देखकर भी अनदेखा और अनसुना कर देते हैं |जी हा ,बात यहाँ ‘पोस्टर पॉल्युशन’ की ही हो रही हैं | चलिए आपको मैं कुछ रोचक तथ्य से रूबरू करता हूँ जो वाकई में चकित करने वाला हैं | दिल्ली मेट्रो अपने पिलर्स और दीवारों पे पोस्टर चिपकाने वालो से इतना तंग आ गई की उसे अपने पिलर्स के डिज़ाइन में ही बदलाव करना पड़ा | नयी डिज़ाइन में पोस्टर चिपकाना मुश्किल होगा |हालात तो तब बद से बदतर हो गयी जब इन पोस्टरों को हटाने के लिए अलग से एजेंसी रखनी पड़ी और इसका बकायदा टेंडर भी हुआ | 

यह तो हुई  केवल दिल्ली मेट्रो की बात |पूरे दिल्ली में देखे तो सरकारी हो या गैर सरकारी संस्था,सभी का लगभग यही हाल हैं |दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव के दौरान तो पूरी दिल्ली की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं हैं |हर साल ABVP हो या NSUI पोस्टर वॉर के चलते उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ता हैं | 

सर्द के दिनों में तो आधी दिल्ली कुहासा और आधी दिल्ली पोस्टर के पटने से नहीं दिखाई देती| ईद, दिवाली,क्रिसमस,गुरुपर्व की तो बात छोड़ दे, यहाँ तो छोटे मोटे क्षेत्रीय पर्व पे भी नेता लोग पोस्टरों से दिल्ली को भर देते हैं | हर गली हर मोहल्ला,बस एक ही राग होता हैं | देश की राजधानी होने का भार भी यही के लोग झेलते हैं जब नेताओं और बड़े लोगो के जन्मदिन की शुभकामनायें भी पोस्टर के माध्यम से दिया जाता हैं | कई बार यह प्रतियोगिता का भी रूप धारण कर लेती हैं और अंतत इसका सारा नुकसान यहाँ के निवासियों को ही झेलना पड़ता हैं | 

इस समस्या की ओर ध्यान देने के लिए सरकार की तरफ़ से शायद ही कोई ठोस कदम उठाया गया हो | अगर हम 3 मिनट के लिए भी यह सोचे की बिना पोस्टर के दिल्ली कैसी दिख सकती हैं तो यकीन मानिये वो 3 मिनट आपके 24 घंटे में के सबसे ‘सुकून’ वाले पल होंगे | सरकार को चाहिए की ऑड ईवन फार्मूला की तरह इसे भी कम से कम 15 दिन के लिए लागू किया जाये ताकि हम भी अपनी दिल्ली को उसके असली रूप में देख सके | यह प्रदूषण भले ही आपको आंकडें के हिसाब से खुशी न दे लेकिन ‘सुकून’ वाली जिंदगी में जरुर आराम दे सकता हैं | तो अगली बार आप जब भी घर से बाहर निकले तो बिना पोस्टर वाली दिल्ली देखने और महसूस करने की कोशिश जरुर करे |

         लेखक गौरव गौतम प्रबंधक -‘पि. आर प्रोफेशनल्स’

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