जन-संपर्क में संवाद का महत्व
संवाद की बहुत-सी परिभाषाएँ है लेकिन सामान्यतया,
संवाद एक ऐसा माध्यम है जिसके तहत किसी व्यक्ति की भावना किसी दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाई
जाती है| दूसरे शब्दों में’कोई भी व्यक्त की गई भावनाएक- दुसरे को समझ आ जाए’ उसे
संवाद कहते है| आज के दौरमें संवाद और ज्ञान ऐसे दो पंख है जिनके सहारे आसमान की
ऊचाईयों कोछूआ जा सकता है|
वास्तव में पीआर, संवादहुनर से ही घिरा हुआ
है,यहपीआर की सबसे बड़ीनीव है| क्लायंट/व्यक्तिको आकर्षित और प्रेरित करने के लिए यह सबसे
बड़ा अस्त्र है|संवाद करते समय अपनी बातो को स्पष्ट रूप से रखने के लिए सही उच्चारण
करना, प्रभावशाली शब्दों का उपयोग करना,प्रमुख है| इस हुनर एवं कौशल की मदद से
अपने जन-संपर्क को न सिर्फबरकरार रखा जा सकता हैबल्कि बुलंदियों पर पहूँचाया जा सकता
है|
संवादके कई प्रकार होते है,लेकिन जब हम पीआर (PR)में संवाद की
बात करते है तो आमतौर पर चार प्रकार के संवादका प्रयोग किया जाता हैजोकि
निम्नलिखित हैं:1. मौखिक-संवाद2.सांकेतिक-संवाद3. लिखित-संवाद4. वेब-संवाद|
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मौखिक-संवाद
जब कोई व्यक्ति अपनी भावनाओ को मौखिक रूप से व्यक्त करता है तो हम उसे मौखिक
संवाद कहते है| दैनिक जीवन में सबसे ज्यादा इसका उपयोग किया जाता है|
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सांकेतिक-संवाद
जब कोई व्यक्ति अपनी भावनाओ को मौखिक रूप से न व्यक्त
कर अपने चेहरेके भाव से, शरीर की हाव-भाव से और आँखों से व्यक्त करे तो उसे सांकेतिक संवादकहा जाता है| कई बार गुप्त संवाद
के लिए इसका प्रयोग होता है|यह एक प्रभावशाली संवाद माध्यम है| मगर सांकेतिक संवाद
कि अपनी खामियाँ भी है| एक ही इशारा दो व्यक्तियों के लिए अलग-अलग संवाद का सूचक हो
सकता है| ऐसी स्थिति में परशानी हो सकती है क्योकि प्रेषक और लक्षित संवादकर्ता
के बीच एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है| इसका निराकरण सांकेतिक संवाद से नही
हो सकता|
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लिखित-संवाद
यह एक बहुत ही अहम्
भाग हैजिसका उपयोग ई-मेल,सुचना-पत्र, रिपोर्ट और पत्र-लेखन में किया जाता है| लिखते
समय सही शब्दों का उपयोग करना, मात्राओं का ध्यान में रखते हुए सही वाक्य बनाना और
उसका सही-सहीउपयोग करना जरुरी है, ताकि लक्षित
संवादकर्ता बिना किसी भ्रान्ति के सारा संवाद समझ जाये|
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वेब-संवाद
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